श्री सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन विधि
Shri Satyanarayan Vrat Katha and worship method

श्री सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन विधि
श्री सत्यनारायण व्रत कथा - हवन
हवन प्रकरण
भगवान् की कथा सुनने के बाद हवन करने की विधि आती है। जो लोग हवन करना चाहें, उनके लिये यहाँ संक्षेप में हवन की विधि दी जा रही है। कथा स्थल में ही मिट्टी से चौकोर वेदी बना लेनी चाहिये। हवन से पूर्व हाथ में जल अक्षत आदि लेकर इस प्रकार सङ्कल्प करना चाहिये
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः पूर्वोच्चारित ग्रहगणगुणविशेषणविशिष्टायां शुभवेलायां शुभपुण्य तिथ.......गोत्रोत्पन्नोऽहं . नामोऽहं (वर्मोऽहं, गुप्तोऽह) शर्मा यजमानोऽहं (सपत्नीकोऽहं) कृतस्य श्रीसत्यनारायण व्रतकथा कर्मणः साङ्गता सिद्धार्थं यथोपस्थित सामग्रीभिः होमं करिष्ये। संकल्प कर जल छोड़ दें।
पञ्च-भू-संस्कार -
संकल्प के उपरान्त वेदी के निम्न लिखित पाँच संस्कार करने चाहिये -
(१) (दर्नैः परिसमूह्य) तीन कुशों से वेदी अथवा ताम्रकुण्ड का दक्षिण से उत्तर की ओर परिमार्जन करें तथा उन कुशाओं को ईशान दिशा में फेंक दें।
(२) (गोमयोदकेनोपलिप्य) गोबर और जल से लीप दें।
(३) (स्रुवमूलेन अथवा कुशमूलेन त्रिरुल्लिख्य) सुवा अथवा कुशमूल से पश्चिम में पूर्व की ओर प्रादेश मात्र (दस अंगुल लम्बी) तीन रेखाएँ दक्षिण से प्रारम्भ कर उत्तर की ओर खींचें।
(४) (अनामिकाङ्गुष्ठाभ्यां मृदमुद्धत्य) उल्लेखन क्रम से दक्षिण अनामिका और अँगूठे से रेखाओं पर से मिट्टी निकालकर बायें हाँथ में तीन बार रखकर पुनः सब मिट्टी दाहिने हाथ में रख लें और उसे उत्तर की ओर फेंक दें।
(५) (उदकेनाभ्युक्ष्य) पुनः जल से कुण्ड या स्थण्डिल को सौंच दें।
इस प्रकार पञ्च-भू-संस्कार करके पवित्र अग्नि अपने दक्षिण की ओर रखें और उस अग्नि से थोड़ा सा क्रव्याद अंश निकाल कर नैर्ऋत्य कोण में रख दें। पुनः सामने रखी पवित्र अग्नि को कुण्ड या स्थण्डिल पर निम्नलिखित मन्त्र से स्थापित कर दें -
अग्निन्दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुपब्रुवे । देवाँर आसादयादिह ॥
इस मन्त्र से अग्नि स्थापन करने के पश्चात् कुशों से परिस्तरण (फैला दें) करें। कुण्ड या स्थण्डिल के पूर्व उत्तराग्र तीन कुशा या दूर्वा रखें। दक्षिणभाग में पूर्वाग्र तीन कुश या दूर्वा रखें। पश्चिमभाग में उत्तराग्र तीन कुश या दूर्वा रखें। उत्तरभाग में पूर्वाग्र तीन कुश या दूर्वा रखें। अग्नि को बाँस की नली से प्रज्वलित करें। इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर निम्न-मन्त्र से अग्निदेव का आवाहन करें -
ॐ सर्वतः पाणिपादश्च विश्वरूपो महान् अग्निः सर्वतोऽक्षिशिरोमुखः ।
प्रणीतः सर्व कर्मसु ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः आवाहयामि स्थापयामि।
निम्नलिखित मन्त्र से अग्नि का ध्यान एवं गन्ध, अक्षत आदि से पूजन करें -
अग्निं प्रज्वलितं वन्दे जातवेदं हुताशनम्। सुवर्णवर्णममलं समिद्धं सर्वतोमुखम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः बलवर्धननाम् अग्नये नमः ध्यायामि ध्यानं समर्पयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि॥
हवन विधि -
दाहिना घुटना पृथ्वी पर लगाकर सुवा से लेकर प्रजापति देवता का ध्यान करके निम्न मन्त्र का मन से उच्चारण कर प्रज्वलित अग्नि में आहुति दें, आहुति देने के पश्चात् सुवा में बचे घी को प्रोक्षणीपात्र में छोड़ें।
(१) ॐप्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम ।
(२) ॐ भूः स्वाहा इदं अग्नये न मम।
(३) ॐ भुवः स्वाहा इदं वायवे न मम।
(४) ॐस्वः स्वाहा इदं सूर्याय न मम।
यहाँ से प्रोक्षणी में घी छोड़ना बन्द कर दें।
श्रेष्ठ आहुति
(आहुती मृगी मुद्रा से देनी चाहिये एवं स्वाहा इस शब्द के उच्चारण के साथ देनी चाहिये)
ॐगणानान्त्वा गणपतिथं हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति हवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिथं हवामहे व्वसोमम। आहमजानि गर्भधमा त्त्वमजासि गर्भधम् स्वाहा॥
ॐ अम्बेऽअम्बिकेऽम्बालिके नमा नयति कश्चन। स सस्त्यश्श्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् स्वाहा॥
नवग्रह होम -
(१) ॐ सूर्याय स्वाहा।
(२) ॐ चन्द्रमसे स्वाहा।
(३) ॐ भौमाय स्वाहा।
(४) ॐ बुधाय स्वाहा।
(५) ॐ गुरवे स्वाहा।
(६) ॐ शुक्राय स्वाहा।
(७) ॐ शनैश्चराय स्वाहा।
(८) ॐ राहवे स्वाहा।
(९) ॐ केतवे स्वाहा।
ॐ अधिदेवताभ्यो स्वाहा। ॐ प्रत्यधि देवताभ्यो स्वाहा। ॐ पञ्चलोकपालेभ्यो स्वाहा।
षोडशमात का हवन -
(१) ॐ गौर्यै स्वाहा।
(२) ॐ पद्मायै स्वाहा।
(३) ॐ शच्यै स्वाहा।
(४) ॐ मेधायै स्वाहा।
(५) ॐ सावित्र्यै स्वाहा।
(६) ॐ विजयायै स्वाहा।
(७) ॐ जयायै स्वाहा।
(८) ॐ देवसेनायै स्वाहा।
(९) ॐ स्वधायै स्वाहा।
(१०) ॐ स्वाहायै स्वाहा।
(११) ॐ मातृभ्यो स्वाहा।
(१२) ॐ लोकमातृभ्यो स्वाहा।
(१३) ॐ धृत्यै स्वाहा।
(१४) ॐ पुष्टच्चै स्वाहा।
(१५) ॐ तुष्टच्चै स्वाहा ।
(१६) ॐ आत्मनः कुलदेवतायै स्वाहा।
ॐ श्रियै स्वाहा। ॐ लक्ष्म्यै स्वाहा। ॐ धृत्यै स्वाहा। ॐ मेधायै स्वाहा। ॐ स्वाहायै स्वाहा। ॐ प्रज्ञायै स्वाहा। ॐ सरस्वत्यै स्वाहा।
प्रधान-होम -
यहाँ प्रधान देवता श्रीसत्यनारायण हैं अतः प्रथम द्वादशाक्षर मन्त्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा" का कम से कम १०८ बार (एक माला) आहुति देनी चाहिये, अथवा समय के अनुकूल यथाशक्ति जप करके मन्त्र के साथ अन्त में स्वाहा बोलकर दशांश हवन करना चाहिये। एक माला से आहुति न हो सके तो कम से कम दस आहुतियाँ देनी ही चाहिये।
अग्निदेव का उत्तर पूजन -
प्रधान हवन के पश्चात् हवन की सफलता की सिद्धि के लिये निम्नलिखित मन्त्र से गन्ध, अक्षत एवं पुष्पादि से उत्तर पूजन करें -
ॐ स्वाहा-स्वधा-युताय बलवर्धन-नामाग्नये नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्याणि समर्पयामि।
प्रार्थना -
ॐ श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां बुद्धि बलं श्रियम्।
आयुष्यं द्रव्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ॥
ॐ स्वाहास्वधायुताय बलवर्धननामाग्नये नमः।
प्रार्थना पूर्वकं नमस्करोमि प्रणमामि ॥
इसके बाद 'ॐ अङ्गानि च मा आप्यायन्ताम्' कहकर हाथों से अग्निदेव को अपने सम्पूर्ण शरीर में धारण करने की भावना करें।
स्विष्टकृत् हवन स्रुवा में घी रखकर दाहिना घुटना जमीन में लगाकर निम्नमन्त्र से आहुति दें।
ॐ अग्रये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम।
(शेष स्रुवा में बचा घी प्रोक्षणी में डालें)
भूः आदि नव आहुतियाँ -
प्रत्येक आहुति के बाद स्रुवा से बचा घी प्रोक्षणी पात्र में डालें।
१. ॐ भूः स्वाहा, इदमग्नये न मम।
२. ॐ भुवः स्वाहा इदं वायवे न मम।
३. ॐ स्वः स्वाहा इदं सूर्याय न मम ।
४. ॐ अग्नीवरुणाभ्यां स्वाहा, इदं अग्नीवरुणाभ्यां न मम।
५. ॐ अग्नीवरुणाभ्यां स्वाहा, इदं अग्नीवरुणाभ्यां न मम ।
६. ॐ अग्नये स्वाहा, इदमग्नये न मम।
७. ॐ वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च स्वाहा। इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च न मम।
८. ॐ वरुणायादित्यायादितये स्वाहा। इदं वरुणायादित्यादितये न मम।
९. ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम।
अग्नि प्रदक्षिणा तथा भस्मधारण -
तदुपरान्त यजमान अग्नि की प्रदक्षिणा करे और आचार्य घृतयुक्त सुवा से भस्म ग्रहण कर अनामिका अँगुली से पहले स्वयं भस्म धारण करे, तदनन्तर श्रोताओं को भस्म धारण कराएँ। भस्म धारण की विधि इस प्रकार है
'ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः' कहकर ललाट में, 'ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषम्' कहकर कण्ठ में, 'ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषम्' कहकर दक्षिण बाहुमूल में और 'ॐ तन्नोऽअस्तुत्र्यायुषम्' कहकर हृदय में भस्म धारण करना चाहिये।
संस्रवप्राशन और दक्षिणादान -
प्रोक्षणीपात्र के जल में आहुति से बचा जो घृत छोड़ा गया है, उसको यजमान थोड़ा ग्रहण कर ले अथवा सूँघ ले, इसी का नाम संस्रव प्राशन है। तत् पश्चात् आचमन करें। आचार्य आदि ब्राह्मणों को दक्षिणा तथा भूयसी (भूमि) दक्षिणा प्रदान करें। तदनन्तर भगवान् का उत्तर पूजन करें।
उत्तर पूजन -
संक्षेप में गन्धाक्षत पुष्पादि उपचारों से भगवान् श्रीसत्यनारायण तथा आवाहित देवताओं का उत्तर पूजन करना चाहिये। पूजनोपरान्त आरती करनी चाहिये।
ॐ भूर्भुवः स्वः सर्वे आवाहित देवताभ्यो नमः सकल पूजनार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।