श्री सत्यनारायण व्रत कथा - कलश पूजन
Shri Satyanarayan Vrat - Kalash Puja

श्री सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन विधि
श्री सत्यनारायण व्रत कथा - कलश पूजन
कलश पूजनम्
सर्वप्रथम कलश में रोली से स्वस्तिक बनाकर व कलश के गले में तीन धागे वाली मौली (कच्चा सूत्र) लपेटकर पूजन कर्ता को अपनी बायीं ओर अबीर आदि से अष्टदल कमल बनाकर उसपर सप्तधान्य (जौ, घान, तिल, कँगनी, मूँग, चना तथा साँवा) या चावल अथवा गेहूँ या जौ रखकर उसके ऊपर कलश को स्थापित करें। उस स्थापित कलश में जल डाल दें। तदनन्तर कलश में यथोपलब्ध सामग्री-चन्दन, सर्वोषधी, हल्दी, दूर्वा, कुश, सप्तमृत्तिका, (घुड़साल, हाथीसाल, बाँबी, नदियों के संगम, तालाब, राजा के द्वार और गोशाला-इन सात स्थानों की मिट्टी को सप्तमृत्तिका कहते हैं) सुपारी, पञ्चरत्न, (सोना, हीरा, मोती, पद्मराग और नीलम) तथा दक्षिणा भी छोड़ें। तदुपरान्त पञ्चपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, आम तथा पाकड़ के नये और कोमल पत्ते) छोड़ें।
तत्पश्चात्-कलश को वस्त्र से अलंकृत करें तथा कलश के ऊपर चावल से भरे पूर्णपात्र को रखें और उस पर लाल कपड़े से वेष्टित नारियल को भी रखें। नारियल के अभाव में सुपारी अथवा फल रखें।
वरुणम् आवाहयेत् -
कलश में सर्वप्रथम जल के अधिपति वरुणदेव का अक्षत पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र के द्वारा आवाहन करें।
ॐ तत्त्वायामिब्ब्राह्मणावन्दमानस्तदा शास्तैयजमानोहविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणेहबोध्युरुशः समानऽआयुः प्रमोषीः ॥
अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्ग सपरिवारं सायुधं स शक्तिकं आवाहयामि स्थापयामि।
ॐ अपांपतये वरुणाय नमः।
इति पञ्चोपचारैर्वरुणं सम्पूज्य ।
(चावल फूल छोड़कर, वरुणदेव की पञ्चोपचार से पूजा करें)
कलशस्थित देवानां नदीनां तीर्थानां च आवाहनम्
तदनन्तर अन्य देवी-देवताओं का हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए आवाहन करें-
ॐ कलाकला हि देवानां दानवानां कला कलाः।
संगृह्य निर्मितो यस्मात् कलशस्तेन कथ्यते ॥
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठेरुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्यस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु सागराः सप्त सप्तद्वीपा च मेदिनी।
अर्जुनी गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती ॥
कावेरी कृष्ण वेणा च गङ्गा चैव महानदी।
तापी गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथा पराः।
पृथिव्यां यानि तीर्थानि कलशस्थानि तानि वै ॥
सर्वे समुद्राः सरितः तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थ दुरितक्षय कारकाः ॥
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः।
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ॥
अत्र गायत्री सवित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।
आयान्तु मम शान्त्यर्थ दुरितक्षय कारकाः ॥
(हाथ के अक्षत-पुष्प कलश पर चढ़ा दें)
प्रतिष्ठापनम् -
ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्ज्यस्यबृहस्प्पतिर्य्यज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टंय्यज्ञः समिमन्दधातु ॥ व्विश्वेदेवासऽ इहमा दयन्तामों ३ प्रतिष्ठ ॥
कलशे वरुणाद्यावाहित देवताः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु।
अक्षत-पुष्प छोड़ते हुए कलश की प्रतिष्ठा करें, एवं विविध उपचारों से वरुणदेव का सविधि पूजन करें।
कलशे वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः।
षोडशोपचारैः पूजनम् कुर्यात् ।
आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि।
पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
हस्तयोः अध्यं समर्पयामि।
मुखेआचमनीयं जलं समर्पयामि।
सर्वाङ्गेस्नानं समर्पयामि।
पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि।
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
वस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
हस्तौप्रक्षाल्य।
ज्ञोपवीतं समर्पयामि।
आचमनीयं समर्पयामि।
उपवस्त्रं समर्पयामि।
गन्धं समर्पयामि।
अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्पमालां समर्पयामि।
नानापरिमल द्रव्याणि समर्पयामि।
धूपमाघ्रापयामि।
प्रत्यक्षदीपं दर्शयामि।
हस्तौ प्रक्षाल्य ।
नैवेद्यं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
मध्ये पानीयं उत्तरापोशनं च समर्पयामि।
ताम्बूलं समर्पयामि।
कृतायाः पूजाया: साद्गुण्यार्थे द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।
मन्त्र पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
कलश प्रार्थना
पूजनोपरान्त हाथ में पुष्प लेकर इस प्रकार प्रार्थना करें-
देव दानव संवादे मध्यमाने महोदधौ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः।
त्वयितिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥
शिवः स्वयं त्वमेवाऽसि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः ॥
त्वयितिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः काम फल प्रदाः।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव।
सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय, सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय।
सुपाशहस्ताय झषासनाय, जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ॥
पाशयाणे नमस्तुभ्यं पद्मिनी जीवनायक।
यावत्कर्म समाप्तिः स्यात् तावदत्र स्थिरो भव॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कलशोपरि सर्वेआवाहित देवताभ्यो नमः प्रार्थनापूर्वकं नमस्करोमि ।
समर्पणम्ः
अनया पूजया कलशे वरुणाद्यावाहित देवताः प्रीयन्तां, न मम।
षोडशमातृका पूजनम्
१५. आत्मनः कुलदेवता | १२. लोकमातरः | ८. देवसेना | ४. मेधा | ||
१५. तुष्टि | ११. मातरः | ७. जया | ३. शची | ||
१४. पुष्टिः से | १०. स्वाहा | १ . विजया | २. पद्मा | ||
१३.धृत्ति | ९. स्वधा | ५. सावित्री | १. गौरी गणेश |
षोडश मातृकाओं के लिये सोलह कोष्ठवाला एक चौकोर मण्डल बनायें। उन सोलह कोष्ठकों में पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमशः निम्नलिखित नाम मन्त्रों से आवाहन करें।
(१) ॐ गौर्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (२) ॐ पद्मायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (३) ॐशच्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (४) मेधायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (५) सावित्र्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (६) ॐविजयायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (७) ॐजयायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (८) ॐ देवसेनायै नमः आवाहयामि स्थापयामि । (९) स्वधायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (१०) ॐ स्वाहायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (११) ॐ मातृभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि। (१२) ॐ लोकमातृभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि। (१३) ॐ ४ नृत्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (१४) ॐ पुष्टच्चै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (१५) ॐ तुष्टच्चै नमः आवाहयामि स्थापयामि। (१६) ॐ आत्मनः कुलदेवतायै आवाहयामि स्थापयामि ।
प्रतिष्ठापनम्-
मनोजूतिर्जुषतामाज्ज्यस्यबृहस्प्पतिर्य्यज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टंय्यज्ञः समिमन्दधातु । व्विश्वेदेवासऽ इहमा दयन्तामों३॥ प्रतिष्ठ ॥
गणेश सहितगौर्यादिषोडशमातृकाभ्यो नमः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु।
'गणेश सहितगौर्यादिषोडशमातृकाभ्यो नमः' इति पञ्चोपचारैः सम्पूज्य ।
इस नाम मन्त्र से गन्ध-अक्षत आदि उपचारों के द्वारा पूजन करें और निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें।
गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ॥
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाहोता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेश सहितगौर्यादिषोडशमातृकाभ्यो नमः प्रार्थना पूर्वकं नमस्करोमि ।
समर्पण-
अनया पूजया गणेश सहितगौर्यादिषोडशमातरः प्रीयन्तां न मम-कहकर मण्डलपर जल छोड़ दें और पुनः प्रणाम करें।
सप्तघृतमातृका पूजनम्
श्री, लक्ष्मी, घृति, मेधा, पुष्टि, श्रद्धा तथा सरस्वती ये सात (सप्तघृत) मातृकाएँ कहलाती हैं। इनके पूजन के लिये किसी वेदी अथवा पाटे पर प्रादेशमात्र स्थान में पहले रोली या सिन्दूर से स्वास्तिक बनाकर ॥ श्री: ॥ लिखें।

इसके नीचे एक बिन्दु और उसके नीचे दो बिन्दु, इसी प्रकार क्रमशः तीन, चार, पाँच, छः बिन्दु बनाते हुए सबसे नीचे सात बिन्दु बनायें। यह सप्तघृतमातृका मण्डल है। इन्हें गरम घी की सात धाराएँ भी देनी चाहिये।
तदनन्तर नीचे लिखे नाम मन्त्रों से अक्षत-पुष्प लेकर आवाहन करें-
ॐश्रियै नमः आवाहयामि स्थापयामि। ॐलक्ष्म्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि। ॐधृत्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि। ॐ मेधायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। ॐ स्वाहायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। ॐ प्रज्ञायै नमः आवाहयामि स्थापयामि। सरस्वत्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि।
प्रतिष्ठापनम् ॐमनोजूतिज्र्जुषतामाज्ज्यस्यबृहस्प्पतिर्य्यज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टंय्यज्ञः समिमन्दधातु । व्विश्वेदेवासऽ इहमा दयन्तामों३ प्रतिष्ठ॥ सप्तघृतमातृकाभ्यो नमः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु।
तदनन्तर 'सप्तधृतमातृकाभ्यो नमः' इस मन्त्र द्वारा गन्धादि उपचारों से पूजन करें, एवं निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें-ॐश्रीर्लक्ष्मीर्घतिर्मेधा स्वाहा प्रज्ञा सरस्वती। माङ्गल्येषु प्रपूज्यन्ते सप्तैताघृतमातरः। प्रार्थना पूर्वकं नमस्करोमि ॥ समर्पण 'अनया पूजया वसोर्धारादेवताः प्रीयन्तां, न मम' कहकर मण्डल पर जल छोड़ दें और पूजन कर्म को समर्पित कर दें।
नवग्रह मण्डलम् -

नवग्रह-पूजन -
ग्रहों के स्थापन के लिये किसी वेदी अथवा पाटेपर नौ कोष्ठकों का एक चौकोर मण्डल बनायें। बीचवाले कोष्ठक में सूर्य, अग्निकोण के कोष्ठक में चन्द्र, दक्षिण में मंगल, ईशानकोण के कोष्ठक में बुध, उत्तर में बृहस्पति, पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनि, नैर्ऋत्यकोण के कोष्ठक में राहु और वायव्यकोण के कोष्ठक में केतु की स्थापना करें।
ग्रहों का आवाहन-
हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूर्यादि ग्रहों के नाम मन्त्रों से पूर्वोक्त कोष्ठकों में नौ ग्रहों का पृथक् पृथक् आवाहन-स्थापन करें और अक्षत-पुष्प छोड़ते जायँ-
(१) ॐ सूर्याय नमः सूर्यमावाहयामि स्थापयामि।
(३) ॐ भौमाय नमः भौममावाहयामि स्थापयामि।
(५) ॐ गुरवे नमः गुरुमावाहयामि स्थापयामि।
(२) ॐ सोमाय नमः सोममावाहयामि स्थापयामि।
(४) ॐ बुधाय नमः बुधमावाहयामि स्थापयामि।
(६) ॐ शुक्राय नमः शुक्रमावाहयामि स्थापयामि।
(७) ॐ शनैश्चराय नमः शनैश्चरमाहयामि स्थापयामि।
(८) ॐ राहवे नमः राहुमाहयामि स्थापयामि ।
(९) ॐ केतवे नमः केतुमावाहयामि स्थापयामि।
ॐ अधिदेवताभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि।
ॐ प्रत्यधिदेवताभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि।
ॐ दसदिक्पालेभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि।
ॐ पञ्श्चलोकपाल देवताभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि।
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण कर ग्रहों को प्रतिष्ठित करें और मण्डल पर अक्षत छोड़ दें।
प्रतिष्ठापनम्-
मनोजूतिर्जुषतामाज्ज्यस्यबृहस्प्पतिर्य्यज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टंय्यज्ञः समिमन्दधातु ॥ व्विश्वेदेवासऽ इहमा दयन्तामों ३॥ प्रतिष्ठ॥
अस्मिन् नवग्रह मण्डले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहदेवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
निम्नलिखित नाम मन्त्र से गन्ध-अक्षत आदि पञ्चोपचार अथवा षोडशोपचार द्रव्यों से पूजन करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिनवग्रह देवताभ्यो नमः ।
पूजनोपरान्त हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वेग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः, सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं, नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिनवग्रह देवताभ्यो नमः प्रार्थना पूर्वकं नमस्करोमि ।
इसके बाद निम्नलिखित वाक्य उच्चारण करते हुए नवग्रहमण्डल पर जल छोड़ दें और नमस्कार करें-
'अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्तां न मम।'
तदनन्तर प्रधान देवता श्रीसत्यनारायण (श्रीशालग्राम) भगवान् का पूजन आगे दी गयी विधि के अनुसार करें।