भानुसप्तमी - रथ सप्तमी सौभाग्य, सुंदरता और संतान का व्रत
Bhanusaptami - Rath Saptami

भानुसप्तमी - रथ सप्तमी
भानुसप्तमी - रथ सप्तमी क्या है ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह में दो सप्तमी तिथि आती हैं। वहीं, इन तिथि में से अगर रविवार के दिन सप्तमी तिथि पड़ जाती है, तो उसे भानु सप्तमी या रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब पहली बार सूर्य का प्रकाश धरती पर पड़ा था, उस दिन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी, रविवार दिन था। तभी से इस तिथि को भानु सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से व्रत रखता है और पूजा करता है, उस पर सूर्य देव की विशेष कृपा होती है।
इस समय के दौरान पवित्र स्नान करने से व्यक्ति को सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है और उसे अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस कारण रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल सकती है। कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में सात प्रकार के पाप करता है। ये जानबूझकर, अनजाने में, मुंह के वचन से, शारीरिक क्रिया द्वारा, मन में, प्रचलित जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं। रथ सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से इन सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
जो महिलाएं इससे पहले शीतला षष्ठी का भी व्रत रखती हैं, उन्हें षष्ठी में सिर्फ एक बार ही भोजन करना चाहिए. सप्तमी के दिन विधि पूर्व सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए. उस दिन प्रातः काल जागने के बाद नदी, तालाब पर जाकर सिर पर दीप धारण कर सूर्य की स्तुति करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र या फिर गायत्री मंत्र जपना चाहिए. स्नान के बाद सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना कर मध्य में शिव तथा पार्वती की स्थापना कर पूजन करना चाहिए, पूजन के बाद ब्राह्मण को दान देने का प्रावधान है. इसके बाद सूर्य एवं शिव पार्वती का विसर्जन कर घर आने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए
भानुसप्तमी व्रत विधि
भानुसप्तमी का व्रत उदया तिथि (जो तिथि सूर्योदय के साथ शुरू हो) से ली जाती है। स्नानके विषयमें यह स्मरण रहे कि जो माघ स्नान करते हों, वे इसी दिन अरुणोदय (पूर्व दिशाकी प्रातःकालीन 'लालिमा) होने पर और भानुसप्तमी- निमित्त स्नान करनेवालों को सूर्योदय के बाद स्नान करना चाहिये। स्नान करने के पहले आक के सात पत्तों और बेर के सात पत्तों को लाल धागे की बत्तीवाले तिल के तेल वाले दीपक में रखकर उसको सिर पर रखे और सूर्य का ध्यान करके गन्ने से जल को हिलाकर दीपक को जल में प्रवाहीत कर दें।
दिवोदास के मतानुसार दीपक के बदले आक के सात पत्ते सिर पर रखकर ईख से जल को हिलाये और निम्न मंत्र से पढ़कर दीपकको बहा दें -
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नमः।
वरुणाय नमस्तेऽस्तु।।
इसके बाद निम्न मंत्र का जप करके विष्णु भगवान् और सूर्य भगवान् को देखकर पादोदक (गङ्गाजल अथवा चरणामृत) को जल में डालकर स्नान करें तो क्षणभर में पाप दूर हो जाते हैं -
यद् यज्जन्मकृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम्।
मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः ॥
इति सप्तविधं पापं स्नानान्ते सप्तसप्तिके ।
सप्तव्याधिसमाकीर्ण हर भास्करि सप्तमि ॥
भानुसप्तमी का अर्घ्य मंत्र विधि -
स्नान के बाद अगर संभव हो तो सूर्यदेव को गंगाजल से अर्घ्य दें। अर्घ्यदान करते समय भगवान सूर्य के सामने मुँह करते हुए, नमस्कार मुद्रा में, मुड़े हुए हाथ से, छोटे कलश की सहयता से धीरे-धीरे जल चढ़ाते हैं। लोटे में जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, सात अर्कपत्र और सात बदरीपत्र रखकर निम्न मंत्र से सूर्य को अर्घ्य दें -
सप्तसप्तिवह प्रीत सप्तलोकप्रदीपन।
सप्तम्या सहितो देव गृहाणाध्यै दिवाकर॥
और इसी प्रकार अब सप्तमी को निम्न मंत्र से अर्घ्य दें -
जननी सर्वलोकानां सप्तमी सप्तसप्तिके।
सप्तव्याहृतिके देवि नमस्ते सूर्यमण्डले ॥
भानुसप्तमी पूजन संकल्प -
सुवर्णादि की छोटी मूर्ति हो तो उसे अष्टदल कमल के बीच में स्थापित कर संकल्प लें -
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत ... /....नाम संवत्सरे माघ मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी तिथौ ... वासरे (दिन का नाम जैसे रविवार है तो "रवि वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः माघ मासे सप्तमी तिथौ ममाखिलकामनासिद्धचथें सूर्यनारायणप्रीतये च सूर्यपूजनं करिष्ये।
इसके बाद सूर्याय नमः इस नाम-मन्त्र से अथवा पुरुषसूक्तादि से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करे।
इसके बाद भगवान भास्कर की आरती करें।
भानुसप्तमी का दान -
इसी दिन दान के निमित्त नित्यनियम से निवृत्त होकर चन्दन से अष्टदल लिखें। पूर्वादिक्रम से उसके आठों कोणों पर शिव, शिवा, रवि, भानु, वैवस्वत, भास्कर, सहस्त्रकिरण और सर्वात्मा इनका यथाक्रम स्थापन और पूजन करके ताम्रादि के पात्र में कुण्डल, घी, गुड़ और तिल रखकर लाल वस्त्र से ढँक कर और गन्ध-पुष्पादि से पूजन करके निम्न मंत्रोच्चार करके ब्राह्मणको दान दें -
आदित्यस्य प्रसादेन प्रातःस्त्रानफलेन च।
दुष्टदुर्भाग्यदुःखघ्नं मया दत्तं तु तालकम्॥
भानुसप्तमी के निमित्त प्रातः खानादि से निश्चिन्त होकर समीप में सूर्यमन्दिर हो तो उसके सम्मुख बैठें। ऋतुकालके पत्र, पुष्प, फल, खीर, मालपुआ, दाल-भात या दध्योदनादिका नैवेद्य निवेदन करे और भगवान्को सर्वाङ्गपूर्ण रथमें विराजमान करके गायन-वादन और स्वजनपरिजनादिको साथ लेकर नगर-भ्रमण करवाकर यथास्थान स्थापित करे। ब्राह्मणोंको खीर आदिका भोजन करवाकर दिन अस्त होने से पहले पहले स्वयं एक बार भोजन करे। उस दिन तेल और नमक न खायें। इस प्रकार प्रतिवर्ष करें तो अक्षय पुण्य होता है।
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